मिलन की शाम
अपने दिल को सुलगाते सारे अंगारे तुम ने इस कोमल लड़की को सौंप दिये। अब उसे अपनी बेचैनी का सबब समझ में आ रहा था कि क्यों उस की बेकली हद से सिवा थी।
ज़ईम से वहां खड़ा न रहा गया भला उसे इस हाल में कैसे देख सकता था मगर अपना चैन अपनी नीन्द उस के सरहाने ही छोड़ आया था । बिस्तर पर जैसे कांटे उग आए थे और कमरे की फ़ज़ा में उस का दम घुटने लगा था । इस लिए बाकी की सारी रात उस ने छत पर खुले आसमान के नीचे गुज़ार दी थी ।
तीन चार दिन इस उदास और बेज़ारी की कैफियत में गुज़र गए । बुखार तो उतर गया मगर कमजोरी इतनी शदीद थी कि अरबा सहन तक खुली फ़ज़ा में जाने की हिम्मत भी खुद में नहीं पाती थी । उसे कम्पनी देने के लिए कोई न कोई उस के साथ होता। ज़ईम दोबारा उसे देखने नहीं आया था। अरफा ने उस से कहा था कि ऐसी कोई बात ज़रुर है जो उसे परीशान कर रही है मगर वह बताना नहीं चाह रही । अरबा ने उसे यकीन दिलाया ऐसी कोई बात नहीं । अब तो वाकई में अरबा के पास उसे बताने के लिए कुछ नहीं था । सिवाए एक अन कहे अन सुने इक़रार के जो आंखें करती थी और आंखें ही समझती थी या फिर यह जज़्बा ही ऐसा था कि उस में ज़बानी इज़हार की कोई अहमियत नहीं थी । फिर घर में शादी की हलचल शुरु हो गई। दूर पास के रिश्तेदारों ने जो रौनक बिखेरी सो बिखेरी रोज़ ही रात
को सोनिया की सखी सहेलियां ढोलक पीटती नये पुराने गानों की टांगे तोड़ने पर कमर बस्ता रहती । लड़कियों ने तो अरफा को ही अपना लीडर मान लिया था। उस की खूबसूरत और अच्छी शवसीयत से तो वह सब बहुत मुतास्सिर थीं उस पर उस का फैशन उस की शहरी लड़की होने का लेबिल सोने पर सुहागा का काम करता था और इस शाम भी वह कमरे में बैठी बाहर से आने वाली आवाजें सुन रही थी। जब अरफा तेजी से कमरे में दाखिल हुई ।
"चलो अरबा! उठो तय्यार हो जाओ फटाफट ।"
"कहा?" वह खाली जहनी कैफियत में उसे देखने लगी।
"बाहर आ कर देखो तो कितनी रौनक लगी हुई है। इस अकेले कमरे में तुम्हारा दम नहीं घुटता?"
' "नहीं अरफा मेरी तबीअत पूरी तरह से ठीक नहीं हुई है। ज़्यादा देर बैठने से मुझे चक्कर आने लगते हैं।”
"तो वैठना मत लेट जाना । सोनिया की सहेलियां तुम से मिलना चाह रही हैं । वह तो कमरे में आने वाली थीं मैंने ही उन्हें रोक दिया कि कहीं तुम्हारा यह हुलिया देख कर मारे डर के उलटे क़दमों वापस न भाग जाएं ।" वह उस के कपड़े निकालती बोले जा रही थी ।
"चलो अब जल्दी से नहा कर फ्रेश हो जाओ।" अपने रैशमी बालों को समेटते अरफ़ा उस के पास आई ।
"बहुत प्यारी लग रही हो ।” चन्द लम्हे उसे देखने के बाद अरबा ने कहा तो अरफा को हंसी आ गई। 'मेहनत भी तो बहुत की है खुद पर । देखना तुम्हें तप्यार करूंगी तो सब मुझे कर तुम्हें देखने लगेंगे चलो उठो ।” अरफा ने उसे हाथ पकड़ कर उठाया तोना चाहते हुए भी उसे उठना पड़ा । आज उब्टन की रस्म है अरबा को बिल्कुल भी अन्दाज़ा नहीं था कि उस के कमरे से निकलने तक इतने लोग आ चुके होंगे। जब वह अरफा के साथ तय्यार हो कर बाहर आई तो सब को अपनी तरफ देख कर नर्वस हो गई। फिर आपी ने ही सब से मिलवाया । वह ढोलक बजाती लड़कियों के पास आ बैठी। उन की बातों का जवाब देते देते उस की नज़र बिला इरादा ही आसमान पर गई थी ।
आसमान में अधूरा सा चांद जो यद अपने अधूरे पन पर कुछ मायूस और उदास सा लग रहा था ।
"कब तक यह यूंही रहेगा मांद और उदास शायद हर वह चीज़ जो आधी है उस का वुजूद बेमअने होता है फिर तो मेरा भी कोई वजूद नहीं मैं भी तो आधी हूं और मेरा आधा हिस्सा
'अरबा!" अरफा ने उस का कन्धा
हिलाते हुए शर्बत का गिलास थमाया । "अगर थक जाओ तो तकिये से टेंक लगा लेना ठीक है ।" वह उस का गाल थपथपा कर चली गई। उस ने गहरी सांस लेकर अपने आस पास देखा सोनिया को बाहर लाया जा रहा था रस्म के लिए वह बैठती हुई उस तरफ देखने लगी । | ज़ईम अज़ीज़ के साथ बैठक से निकल रहा था। जब उस की नज़र सामने पड़ी तो जैसे उस के अन्दर तक रौशनी फैल गई। धानी रंग के लिबास से झांकता
चांदनी सा चेहरा दोनों कलाइयों में भर भर के लिबास के हम रंग चूड़ियां पहने वह चेहरे पर आने वाले बाल समेट रही थी । जईम पहली बार इस घनघोर घटाओं जैसी जुलफ़ों को बिखरते देख रहा था ।
जईम की हथेलियों में सा सनाहट होने लगी ।
"यह तुम क्या बुत बने खड़े हो.... यह लड़कियों को ताड़ने का टाइम नहीं है मेरे भाई !”
अज़ीज़ जो फोन सुनने अन्दर चला आया था, उसे बुत बने खड़े देख कर उस के कन्धे पर हाथ रखते हुए बोला तो ज़ईम घूर कर उसे देखने लगा ।
"तुम्हारा ख्याल है मैं लड़कियों को ताड़ रहा हूं। इतना नज़र बाज़ समझ रखा है मुझे ।"
“अब क्या कहूं..... आज कल तुम्हारे अन्दाज़ कुछ बदले बदले से लग रहे हैं।" उसने शरारत से सर खुजाते हुए कहा । "कोई बात तो होगी ।"
"कोई बात नहीं।" उसने मुस्कुराह छुपाई।
"वैसे कौन हो सकती है वह ?" अज़ीज़ यह कह कर इधर उधर निगाहें दौड़ाने लगा ।
"इस बहाने तुम अपनी आंखें मत सेंको ।”
"कहीं वह तो नहीं।" अजीज ने उस की बात अनसुनी कर के एक तरफ इशारा किया और वह हैरान हो गया ।
"किस की बात कर रहे हो?"
"वही जो सब से नुमायां और सब से ज़्यादा खूबसूरत है।" अज़ीज़ के लबों पर दबी दबी मुस्कुराहट थी । 'गोरी रगत, लम्बे बाल, बड़ी बड़ी आखे और।
''बस खबरदार अब इस के आगे और कुछ मत कहना।" इस से पहले कि अजीज और कहता जईम ने फौरन ही उसे टोक दिया और अजीज का कहकहा बलन्द हुआ।
तो मुन्ह खोल ही दिया तुम ने मैने अन्धेरे में तीर फेंका था। उम्मीद तो नहीं थी निशाने पर लगने की ।" वह हंसते हुए
"बड़ा खबीस है तू ।'
शुक्रिया ।" अज़ीज़ ने सर को ज़रा सा खम किया ।
'अब लड़कियों की तरह शर्माना बन्द करो और जल्दी से मुझे मेरी होने वाली भाभी को दिखा दो।"
"मेरी आंखों में तुम्हें वह नज़र नहीं आती।" उसकी निगाहें अरबा पर जमी थीं कि जिस ने उस की नजरों की गर्मी महसूस कर ली थी। जभी कुछ बेचैन हो कर इधर उधर देखने लगी ।
"कौन है यह? गांव की तो नहीं लगती?" अज़ीज़ अरबा को देख कर पूछ रहा था।
"भाभी की बहन है।" अरबा की बेचैनी महसूस कर के ज़ईम ने मुस्कुराते हुए रुख मोड़ा ।
"अरबा नाम है मगर जल्द तुम अरबा भाभी कह कर पुकारोगे ।" उसने यकीन भरे लहजे में कहा।
"मेरी नेक ख़्वाहिशात तुम्हारे साथ है।" जिस जगह वह खड़े थे वहां से वह बाहर बैठे हुए को साफ़ देख रहे थे मगर बाहर के लोगों की नज़र उन पर नहीं पड़
सकती थी। इसी लिए जब वह बाहर निकले अरबा ने जईम को देखा था। बेहस्तियार उमड़ आने वाले मुस्कुराहट होन्टों में दबाते वह दिल ही दिल में उस से मुखातिब हुई।
"तो यह तुम ही थे यानी मेरे दिल पुकार गलत नहीं थी। जब भी तुम अपनी आंखों से मेरा नाम लेते हो मेरी हर धड़कन मचल उठती है। तुम यह कैसे सोच सकते हो कि तुम मुझे देखोगे और मुझे कुछ पता नहीं चलेगा।"
"अरफा अपने कपड़े मत निकालो। तुम लोग आज यह कपड़े पहनोगी ।"
आज मेहन्दी थी और अरफा अपने कपड़े प्रेस करने के लिए निकाल रही थी । जब आपी ने आ कर एक शापर उस के सामने रखा और दूर बैठी अरबा भी चौक गई।
"यह वाले कपड़े? अरफा ने जल्दी से शापर उठा कर खोला और चेहरे पर मायूसी सी छा गई ।
"किस के हैं यह कपड़े?" अब वह कपड़े उलट पलट कर देख रही थी । एक गुलाबी रंग का सूट था और एक सब्ज़ रंग का जिस पर गोटा किनारी का काम था ।
"किस के है मतलब?... तुम दोनों के हैं और किस के होंगे ।" आपी ने कुछ नाराजी भरी हैरत से कहा ।
'अम्मां ने दिये हैं और उन की ख़्वाहिश है कि आज तुम यह पहनो ।”
"मैं मुआफ़ी चाहती हूं।" अरफ़ा ने एक तरफ रखते हुए कहा।
"यह मेरी पसन्द की नहीं है।" अरबा ने उसे देखा और फिर पास आ कर सब्ज़ रंग का सूट उठा लिया ।
"तुम इसे पहनोगी?” अरफ़ा ने हैरत से पूछा।
"तो क्या हुआ जब उन्होंने इतने खुलूस से दिये हैं तो थोड़ी देर पहनने में क्या हरज है ।"
"तुम हर किसी को अपने जैसा मत समझा करो।” बेदीद बेलिहाज़ आपी ने तन्जिया कहा । उसका मुन्ह उतर गया । "अपने आप को बेलिहाज़ साबित व करने के लिए मैं यह ज़र्क बर्क लिवास नहीं पहन सकती। अरबा तो पागल है ।"
"हां होश मन्द तो एक तुम ही हो । जिसे न तो किसी का दिल रखना आता है और न किसी के एहसासात की कोई परवा है
"ओह आपी! प्लीज! यह इमोशनल डाइलाग न बोलें । आप उन के सामने कुछ मत कहिएगा। अगर उन्होंने मुझ से कुछ पूछ लिया तो मैं बहाना बना दूंगी ।"
आपी चंद लम्हे तो उसे घूरती रहीं फिर किसी नतीजे पर पहुंच कर सर हिलाते हुए बोली ।
"चलो ठीक है इस तरह अम्मां को भी आसानी हो जाएगी।"
"क्या मतलब? क्या आसानी हो जाएगी?" अरफा को हैरानी हुई। वह मुस्कुराई ।
“अस्ल में अम्मां को तुम दोनों बहुत पसन्द आई हो। वह तुम्हारे रिश्ते के बारे में सोच रही हैं।" अरबा का दिल धड़क गया।
"लेकिन वह हम दोनों के बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं। दो बहनों का तो एक बन्दे से निकाह जाइज़ नहीं और
अगर बात एक की है तो फिर मैं अरबा के हक़ में हूं।"
"तुम्हारी तो ज़बान के आगे गडढा है अरफ़ा! कुछ तो सोच समझ कर मुन्ह से बात निकाला करो ।" आपी को गुस्सा आया उस की बात पर ।
" और तुम्हें यह खुश फ़हमी किस बात की है? वह बराहेरास्त भी अरबा के बारे में सोच सकती है ।"
"यही तो प्वाइन्ट है। हम ही क्यों उन्हें अपने घर में मौजूद एक लड़की नज़र नहीं आती।"
"जुबैदा की बात कर रही हो?" आपी ने सवालिया नजरों से उसे देखा तो उस ने हां में सर हिला दिया ।
"यह तो चाची की भी ख्वाहिश थी और अम्मां की भी जुबैदा बहुत प्यारी लड़की है और अच्छा ही है अगर वह घर में रहे मगर जब इस बारे में अम्मां ने ज़ईम से बात की तो उस ने इनकार कर दिया ।" 'अच्छा..... ।" अरफ़ा के साथ साथ अरबा को भी हैरत का झटका लगा ।
"यह कब की बात है?" "
"जब ज़ईम अपनी पढ़ाई पूरी कर के वापस आया तो मुझे औरअम्मां को लगा जईम की शादी कर देनी चाहिए। तब हमने जईम से जुबैदा का जिक्र किया तो उसने कहा मुझे अभी शादी नहीं करनी जुबैदा का रिश्ता तलाश कर लीजिए। मै और अम्मा समझ गई कि ज़ईम साफ़ अलफ़ाज़ में तो नहीं कह रहा मगर ढके छुपे अलफ़ाज़ में यह जताना चाह रहा है कि उसे जुबैदा में कोई दिलचस्पी नहीं है। फिर भी अम्मां ने जईम को समझाने की ठान ली। यह अलग बात कि जैसे जैसे उन का इसरार बढ़ता गया वैसे वैसे ज़ईम के इनकार में शिद्दत और आती गई और अब तो वह जुबैदा का नाम भी सुनना नहीं चाहता था ।"
आपी ने तफ़सील बताई । अरबा ने एक इतमिनान भरी सांस ली । थोड़ी देर पहले जो भारी बोझ दिल पर आ पड़ा था फ़ौरन ही उतर गया था हालांकि वह नहीं जानती थी। अभी एक झटका बाकी था ।
"क्या जुबैदा को यह बात पता है?" 4अरफ़ा ने पूछा।
"यकीनन पता होगी। और न भी हो तो क्या फर्क पड़ता है।"
"बहुत फर्क पड़ता है आपी! क्योंकि वह मासूम सी लड़की सिर्फ ज़ईम के ख़्वाब देखती है।"
"तुम कैसे कह सकती हो ।"
उस ने खुद बताया है मुझे ।
पता हैं उसके आने के बाद वो कितना खुश हो रही थी उसे लगता हैं जईम उसे चाहने लगा है । जईम सादा और मासूम लड़की को
रिजेक्ट कर रहा है बिला वजह । न वह किसी को पसन्द करता है न उसे किसी से मुहब्बत हुई है तो वह उस लड़की का हाथ क्यों नहीं थाम लेता जो उसे इतना चाहती है.......रहे हम........ तो यह तो मुमकिन ही नहीं है। हम में से किसी ने गांव में रहने का सोचा ही नहीं। आज हैं कल चले जाएंगे ।" उस ने बात करते करते अरबा की तरफ देखा जैसे ताईद चाह रही हो। वह नज़रें झुकाए बेडशीट कि चादर को देख रही थी। अरफ़ा ने अपनी बात जारी रखी।
"ज़ईम को जुबैदा से शादी कर लेनी चाहिए आपी! वह उस से प्यार करती है ।". अरबा का दिल चाहा वह उठ कर उस के मुन्ह पर हाथ रख दे। '
"ज़ईम को क्या करना चाहिए. क्या करना नहीं चाहिए यह तुम्हें डिसाइड करने की ज़रूरत नहीं है अरफ़ा ।" आपी ने काटदार लहजे में कहा ।
"मैं सिर्फ मशवरे दे रही थी।"
"उस की ज़रूरत नहीं है, जईम समझदार है अगर उस का दिल नहीं मानता तो वह क्यों एक अन चाहे रिश्ते का तौक अपने गले में डाले जिस से सिर्फ उस का बल्कि जुबेदा का भी जीना हराम हो जाए। वैसे भी यहां ऐसी कई शादियों के अन्जाम देख चुकी हूं में।"
आपी ने बहुत तल्ख हक़ीक़त से पर्दा उठाया था । अरफा चुप सी रह गई। तह भूल गई थी। ज़बानी जमा खर्च से ज़िन्दगी नहीं बनती और जिन फैसलों में जज़्बात और एहसासात से ज़्यादा समझौता शामिल हो जाए। फिर वह सारी उम्र का आज़ार (रोग) बन जाते हैं।
"मेहन्दी आने में देर थी । अरबा ने चेन्ज कर के बालों की चुटिया बनाई आंखों में काजल और होन्टों पर लिस्टिक लगा के कानों में बड़े बड़े बाले डाले वह निकलने को थी जब आपा की आवाज़ पर उसे रुक जाना पड़ा ।
“अरे अरबा यह क्या बस तुम्हारी तय्यारी इतनी सी । कम से कम मेकअप तो अरफ़ा से करवा लेतीं ।"
"नहीं आपा! मेरा दिल नहीं चाह रहा और वैसे भी अरफा इस वक़्त बहुत मसरूफ हैं।"
उसने मुस्कुराते हुए बताया ।
“अच्छा फिर एक मिनट जरा सा ठहर जाओ।" वह यह कह कर बाहर निकल गई। फिर ज़रा सी देर में वापस आ गई।
"तुम्हारे बाल इतने खूबसूरत हैं मैंने सोचा उन में मोतिया की कलियां लगा दूं।" वह उस के रेशमी बालों में गजरा लगाने लगी।
"शुक्रिया आपा!”
वह प्यार से बोली । लड़के वालों की आमद का शोर उठा तो लड़कियां अपनी तय्यारी अधूरी छोड़ कर बाहर निकल आई थीं। बेतहाशा मेकअप और जेवरात में लदी औरतें काफी गुरुर के साथ इन्टर हुई थीं। खुद को हीरो समझते हाथों में मोबाइल फ़ोन लिए लड़के लड़कियों को देख कर ख़्वाह मख्वाह शोख हो रहे थे। अरबा एक तरफ खड़ी दिलचस्पी से यह सब देख रही थी। अरफा उसे कहीं नज़र नहीं आई शायद वह अभी तक कमरे में थी। लड़कियों ने आते ही
सब से पहले सहन के बीचो बीच लड़ी डाली थी। शायद यह लड़के की बहनें और कजिन वगैरह थी और डांस की काफी शौक़ीन लग रही थीं । आपी ने उसे बुला कर कोल्ड ड्रिंक की ट्रे थमाई थी महमानों को सर्व करने के लिए। उस के साथ नाज़ी भी थी । जब वह शर्बत सर्व कर के किचन की तरफ आ रही थी । तब ही किसी ने पीछे से उस का दुपट्टा पकड़ कर खीन्चा था । उस ने मुड़ कर देखा तो एक छह साल का प्यारा सा बच्चा था जो यक़ीनन 'इन मेहमानों में से किसी के साथ था ।
"आप को वह बुला रहे हैं ।” उस ने बैठक के अध खुले दरवाज़े की तरफ इशारा किया । अरबा उलझ गई ।
"कौन बुला रहा है?" उसने झुक कर उस के गाल छुए।
"वह ।" उस ने दुबारा उस तरफ इशारा किया अरबा ने अपने इर्द गिर्द देखा कोई उस की तरफ देख नहीं रहा था।वह एक गहरी सांस लेते हुए उस तरफ बढ़ती आई । वह दरवाज़ा धकेल कर अन्दर दाखिल हुई थी और सामने खड़े ज़ईम को देख कर वहीं जम गई । ज़ईम भी उसे देख कर खो सा गया
उस की महवियत (खोया पन ) देख कर उसे थोड़ी देर पहले अरफा कि की कही बात याद आई ।
"तुम मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो मैं तो वैसी ही लग रही हूं जैसे अब से पहले लगती आई हूं ।" वह सरापा खुशबू थी धनक थी रौशनी थी और ज़ईम उसे देख कर दीवाना हुआ जा रहा था ।
“आप मुझे बुला रहे थे?” अरबा को लगा अगर कुछ देर और गुज़री तो कहीं वह उस की पागल निगाहों के सामने बिखर ही न जाए।
"मुझे भाभी को कुछ कहलवाना था । सामने आप नज़र आई तो मैंने आप ही को बुलवा लिया।"
"और मिस्टर ज़ईम तुम्हें तो झूट बोलना भी नहीं आता।" वह अपने हाथों पर नज़र जमाए उस की बात पर दिल ही दिल में हंसी ।
"तो आप खुद ही आ कर उन से कह देते।" उस ने धीरे से कहा ।
"आ तो जाता...... मगर मुझे अच्छा नहीं लगता औरतों या लडकियों की महफ़िल में यूं मुन्ह उठाए चले आना ।” वह कुछ सादगी से बोला अरबा ने उसे देखा यह बात वाक़ई हैरान कुन थी । उसने खुद देखा था। लड़के आने बाने किस तरह से अन्दर चक्कर लगा रहे थे लेकिन ज़ईम को उस ने एक बार भी लड़कियों की मौजूदगी में आते नहीं देखा था ।
"क्या कहना था आप को ?” "भाभी से कहिएगा मेहमान के लिए शर्बत के साथ चाय भी भिजवा दें।"
"बस इतनी सी बात।" अरबा मायूस सी हो गई।
“तुम कुछ और क्यों नहीं कहते । तुम्हारे पास कहने के लिए मौक़ा और मेरा दिल सुनने को मुन्तज़िर ।"
मगर जईम ने और कुछ नहीं कहा बल्कि उसने अजीब ही हरकत की। वह उसके करीब आ गया था इतने करीब कि अरबा उसके पास से उठती क्लोन की महक महसूस करती खुद में सिमटी छुई मुई बन गई थी। तभी उसने हाथ बढ़ा कर उस के कन्धे को हल्के से छुआ। अरबा
का दिल बेतहाशा धड़कने लगा। उस के छूने पर अरबा ने चौंक कर उसकी तरफ देखा । वह उस के गुलाबी पड़ते रुप को सांस रोके देख रहा था और उसके हाथ में मोतिया की कली थी जो उसके बालों से बिखर कर उसके कन्धे पर गिरी थी । उसे उठाने के लिए ही ज़ईम उसके करीब आया था। वह अपनी चढ़ती सांसों को काबू करती तेजी से बाहर निकल आई।
"तुम मुझे पागल कर के ही छोड़ोगे ।”
अगले दिन बारात थी । पूरा दिन काफी हंगामे और मसरुफियत भरा था और इसी लिए अरबा को ज़ईम कहीं नज़र नहीं आया था। अरबा बहुत बेदिली से तक़रीब में शरीक रही एक अजीब सा खालीपन महसूस हो रहा था उसे अपने अन्दर ।
"सोनिया बहुत खूबसूरत लग रही है ना?" वह पिंडाल के एक कोने में खड़ी थी । जब अरफा ने पास आ कर उस से कहा था । उस ने हां में सर हिला दिया एक तो सोनिया बहुत ही दिलकश नाक नक्शे की मालिक लड़की थी और उस पर अरफ़ा के माहिर हाथों ने उसके हुस्न को और भी दोबाला कर दिया था। नन्दें आते जाते सदक़ा उतार रही थीं और दूल्हा मियां छुप छुपा कर देखे जा रहे थे। उसकी नन्दों को इस तरह सोनिया के लाड उठाते देख कर अरबा ना मालूम से एहसासात में घिर गई ।
"नई नवेली है इस लिए वैसे यह लड़कियां हैं बहुत तेज़ तर्रार सोनिया तो इतनी सीधी साधी है। मुझे तो अभी से
Anjali korde
15-Sep-2023 12:20 PM
Amazing
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Babita patel
15-Sep-2023 10:36 AM
Best part
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hema mohril
13-Sep-2023 08:28 PM
Awesome
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